Friday, September 8, 2017

जड़ें…मंजू मिश्रा


काश कि 
हम लौट सकें 
अपनी उन्ही जड़ों की ओर 
जहाँ जीवन शुरू होता था  
परम्पराओं के साथ 
और फलता फूलता था  
रिश्तों  के साथ 
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मधुर मधुर मद्धम मद्धम  
पकता था  
अपनेपन की आंच में 
 मैं-मैं और-और की
 भूख से परे 
जिन्दा रहता था  
एक सम्पूर्णता 
और संतुष्टि के 
अहसास के साथ 
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