Monday, February 6, 2017

मुझे क्यों सदा दी गई थी....


भड़कने की पहले दुआ दी गई थी।
मुझे फिर हवा पर हवा दी गई थी।

मैं अपने ही भीतर छुपा रह गया हूं,
ये जीने की कैसी अदा दी गई थी।

बिछु्ड़ना लिखा था मुकद्दर में जब तो,
पलट कर मुझे क्यों सदा दी गई थी।

अँधेरों से जब मैं उजालों की जानिब
बढा़, शम्मा तब ही बुझा दी गई थी।

मुझे तोड़ कर फिर से जोडा़ गया था,
मेरी हैसियत यूं बता दी गई थी।

सफर काटकर जब मैं लौटा तो पाया,
मेरी शख्सियत ही भुला दी गई थी।

गुनहगार अब भी बचे फिर रहे हैं,
तो सोचो किसे फिर सज़ा दी गयी थी। 


-कृष्ण सुकुमार

5 comments:

  1. कृष्ण सुकुमार जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. बहुत सुन्दर शब्द रचना.
    ग़ज़ल के हर छंद ने दिल को छूआ।
    आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं ..............
    http://savanxxx.blogspot.in

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  3. मुझे तोड़ कर फिर से जोडा़ गया था,
    मेरी हैसियत यूं बता दी गई थी।

    आपने तो मेरी ही हकीकत बयाँ कर दी।

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