Saturday, July 19, 2014

आज खुद को विश्वास दिला रहा हूँ..............फाल्गुनी























जब देखता हूँ मैं
तुम्हारे माथे पर
चमकती पसीने की बूँदें,


ओस झरती हैं
मेरे दिल की महकती क्यारी में,


जब देखता हूँ मैं
तुम्हें गोबर और पीली मिट्टी से
घर का आँगन लीपते हुए
मेरे मन के आँगन से सौंधी खुशबू उड़ती है,


जब बुनती हो तुम
ठिठुरती सर्दियों में कोई मफलर मेरे लिए
मेरे अंदर का मुस्कुराता प्यार
ख्वाब बुनता है तुम्हारे लिए।
कभी-कभी सोचता हूँ कि
काश,
तुम मेरे इन देखे-अनदेखे सपनों की
एक झलक भी देख पाती तो
शायद यूँ कुँवारा छोड़ मुझे
खुद कुँवारी ना रह जाती।


आज जब गर्मियों में
तुम्हारी यादों की कोयल का
कंठ बैठे जा रहा है
तुम्हारा हाथ
अमराई के तले
मेरे कान उमेठे जा रहा है।


फाल्गुनी,
तुम नहीं लौटोगी
ये मुझे पता है,
पता नहीं क्यों
आज खुद को विश्वास दिला रहा हूँ।
यह अनकही कविता तुमसे ही लिखवा रहा हूँ। 


-फाल्गुनी

12 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार।

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  2. खुबसूरत प्रस्तुति

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  3. सुन्दर और भावप्रणव प्रस्तुति।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. बहुत ही खुबसूरत
    और कोमल भावो की अभिवयक्ति..

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  6. बहुत ख़ूबसूरत कृति ।

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  7. बहुत सुंदर रचना

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति...

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